पुणे में निजी कंपनियों में बिना दस्तावेज़ सत्यापन के भर्ती का मामला उजागर
आईटीआई मार्कशीट में ‘फिटर’, असल में सायबर कैफ़े में एडिटिंग — ठेकेदार पैसों के लालच में योग्य उम्मीदवारों से कर रहे हैं खेल संवाददाता: महेंद्र सिंह लहरिया, मोरेना
पुणे के औद्योगिक इलाकों में भर्ती प्रक्रिया पर सवाल खड़े करने वाला मामला सामने आया है। जानकारी के मुताबिक, निजी कंपनियों में कई ठेकेदार पैसों के लालच में योग्य उम्मीदवारों को दरकिनार कर, फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे अयोग्य लोगों को नौकरी दिलवा रहे हैं। यह मामला केवल एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक गहरे और संगठित नेटवर्क का संकेत देता है।
मामला कैसे उजागर हुआ
सूत्रों के अनुसार, हाल ही में एक युवक ने आईटीआई की मार्कशीट में ‘फिटर’ ट्रेड दर्शाया और इस दस्तावेज़ के सहारे कंपनी में नौकरी पा ली। बाद में जांच में पता चला कि उसने असल में इस ट्रेड में कभी प्रशिक्षण नहीं लिया था। अपने शैक्षणिक रिकॉर्ड को बदलवाने के लिए उसने एक स्थानीय सायबर कैफ़े में डिजिटल एडिटिंग करवाई थी।
यह मामला तब उजागर हुआ जब कंपनी के अंदर तकनीकी त्रुटियों में लगातार बढ़ोतरी देखी गई। जाँच के दौरान एचआर विभाग को संदेह हुआ और दस्तावेज़ों की पुनः जाँच में सच्चाई सामने आ गई।
ठेकेदारों की संलिप्तता
स्थानीय सूत्रों के मुताबिक, ठेकेदार ऐसे मामलों में अहम भूमिका निभाते हैं।
कई ठेकेदार नौकरी पाने के इच्छुक युवाओं से 5,000 से 20,000 रुपये तक की ‘सुविधा शुल्क’ लेते हैं।
इस पैसे के बदले वे दस्तावेज़ सत्यापन प्रक्रिया को दरकिनार कर सीधे फर्जी दस्तावेज़ कंपनी में जमा कर देते हैं।
योग्य उम्मीदवार, जिनके पास असली ट्रेनिंग और अनुभव है, उन्हें अवसर नहीं मिल पाता।
एक पूर्व एचआर अधिकारी के अनुसार, “यह प्रथा न केवल कार्य की गुणवत्ता पर असर डालती है, बल्कि कंपनी की प्रतिष्ठा और बाज़ार में विश्वसनीयता को भी नुकसान पहुँचाती है।”
प्रशासन की कार्रवाई
श्रम विभाग ने इस मामले को गंभीरता से लिया है। श्रम आयुक्त ने आदेश दिया है कि जिन कंपनियों में ठेकेदारों के माध्यम से भर्ती होती है, वहाँ दस्तावेज़ों का अनिवार्य क्रॉस-वेरीफिकेशन किया जाए।
पुलिस विभाग ने सायबर सेल को भी जांच में शामिल किया है। उस सायबर कैफ़े के कंप्यूटर और हार्ड डिस्क जब्त कर ली गई है, जहाँ दस्तावेज़ों में एडिटिंग की गई थी। आईटी एक्ट और भारतीय दंड संहिता की जालसाजी से संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई की तैयारी चल रही है।
पुराने मामले भी जुड़े
जांच में यह भी सामने आया है कि पिछले दो साल में ऐसे कई मामले हुए हैं, लेकिन ज्यादातर में पीड़ित योग्य उम्मीदवारों ने शिकायत दर्ज नहीं कराई, डर और नौकरी खोने के डर से।
2019 में भी पुणे की एक ऑटोमोबाइल कंपनी में 12 फर्जी सर्टिफिकेट के मामले पकड़े गए थे, लेकिन ठेकेदारों पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई थी।
विशेषज्ञों की राय
रोजगार विशेषज्ञों का कहना है कि यह समस्या केवल एक शहर या एक उद्योग की नहीं है, बल्कि पूरे देश में कई जगह ठेकेदारी व्यवस्था में भ्रष्टाचार फैला हुआ है।
इससे योग्य उम्मीदवारों का मनोबल टूटता है।
कंपनियों में काम की गुणवत्ता घटती है, जिससे अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में प्रतिस्पर्धा कमजोर होती है।
लंबे समय में यह आर्थिक विकास पर भी नकारात्मक असर डालता है।
युवाओं के लिए चेतावनी
करियर काउंसलरों का कहना है कि फर्जी दस्तावेज़ बनवाकर नौकरी पाना दोहरी मार है — पहले यह कानूनी अपराध है, और दूसरा, पकड़े जाने पर जीवनभर के लिए रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं।
दोषी पाए जाने पर भारतीय कानून के तहत तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है।