अम्बिकापुर 17 जनवरी 2025/ अम्बिकापुर के गांधी नगर में रहने वाले दिनेश कंसारी सायकल में घूम-घूम कर बर्तन बेचते हैं। दिनभर गली-मोहल्लों में घूमने के बाद जो आय होती है, यही उनके आजीविका का साधन है। दिनेश कंसारी बताते हैं कि उनके एक पुत्र एवं एक पुत्री है, पुत्र कक्षा आठवीं और पुत्री कक्षा चौथी में पढ़ती हैं। उन्होंने बताया कि पुत्र लक्की को बचपन से ही चलने-फिरने में समस्या होती थी। हमने अम्बिकापुर के लगभग हर अस्पताल में गए,यहां तक कि सगे-सम्बन्धियों के कहने पर लक्की को रांची भी लेकर गए। तब पता चला कि यह समस्या आजीवन रहेगी, इसका इलाज सम्भव नहीं है। ये सुनते ही मानों हमारे पैरों तले जमीन खसक गई। अपने छोटे से बच्चे को इस स्थिति में देखकर हृदय कांप उठता था। परन्तु धीरे-धीरे हमने इसे स्वीकार किया और जीवन में आगे बढ़े।
उस समय हमने निश्चय किया कि लक्की को पढा लिखाकर हमें इस काबिल बनाना है कि उसकी ये दिव्यांगता भार ना रहे, उसे किसी पर निर्भर ना रहना पड़े। हमने लक्की का दाखिला स्कूल में करवाया। शुरुआत में मैं स्वयं लक्की को स्कूल छोड़ने जाता था। जब हमें शासन की दिव्यांग सहायक उपकरण वितरण योजना के बारे में जानकारी मिली, तो मैंने बैटरी चलित ट्राइसिकल के लिए आवेदन दिया। लक्की को अक्टूबर 2024 में ट्राइसिकल मिली। उन्होंने बताया कि अब लक्की स्वयं अपने दैनिक कार्य, स्कूल आना-जाना स्वयं कर लेता है।
लक्की अपनी ट्राइसिकल चलाते हुए बताते हैं कि मेरी ट्राइसिकल अच्छी चलती है, मैं इसी में बिना किसी की मदद से स्कूल जाता हूं। पढ़ना मुझे अच्छा लगता है, मैं पढ़-लिखकर भविष्य में कुछ अच्छा करना चाहता हूं और अपने माता-पिता का नाम रोशन करना चाहता हूं। पिता दिनेश ने कहा कि मुझे बहुत खुशी है कि शासन ने ट्राइसिकल के रूप में पुत्र को सहारा दिया। इसके लिए उन्होंने शासन-प्रशासन को धन्यवाद देते हुए आभार व्यक्त किया।