बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के मुंगेली जिले के सरगांव स्थित ग्राम पंचायत रामबोड़ के कुसुम प्लांट में 40 घंटे चले रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद तीन मजदूरों के शव बरामद होने से पूरे क्षेत्र में शोक और आक्रोश की लहर दौड़ गई। साइलो हटाने के दौरान हुए इस दर्दनाक हादसे ने न केवल परिवारों को बल्कि पूरे समाज को झकझोर कर रख दिया है। मृतकों के परिजनों ने 50-50 लाख रुपये मुआवजे, बच्चों की परवरिश की व्यवस्था और एक परिजन को शासकीय नौकरी की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन किया।
यह हादसा तब हुआ जब मजदूर प्लांट में साइलो हटाने का कार्य कर रहे थे। राखड़ का मलबा गिरने से तीन मजदूर दब गए। प्रशासन, एसडीआरएफ और एनडीआरएफ की टीमें मौके पर पहुंचीं और चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में 40 घंटे तक रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया। जिला कलेक्टर राहुल देव और एसपी भोजराम पटेल खुद स्थिति पर नजर बनाए हुए थे। शव बरामद कर उन्हें पोस्टमार्टम के लिए बिलासपुर सिम्स भेजा गया।
मृतकों की पहचान जयंत साहू (सरकंडा, बिलासपुर), प्रकाश यादव (अकोली, बलौदाबाजार), और अवधेश कश्यप (तागा, जांजगीर-चांपा) के रूप में हुई। हादसे के बाद गमगीन परिवारों ने प्रशासन के सामने अपनी मांगें रखीं:
- प्रत्येक मृतक के परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवजा।
- मृतकों के बच्चों की शिक्षा और परवरिश की जिम्मेदारी।
- परिवार के एक सदस्य को शासकीय नौकरी।
परिजनों ने स्पष्ट किया कि जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, वे शवों को स्वीकार नहीं करेंगे।
घटना के बाद से स्थानीय क्षेत्र में गुस्सा और आक्रोश है। ग्रामीणों और सामाजिक संगठनों ने भी परिजनों की मांगों का समर्थन किया है। प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं कि प्लांट में सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम क्यों नहीं थे।
प्रशासन ने आश्वासन दिया है कि परिजनों की मांगों पर उचित निर्णय लिया जाएगा। फिलहाल, कलेक्टर ने मुआवजे की प्रक्रिया को शीघ्र शुरू करने का वादा किया है, लेकिन परिजनों की शासकीय नौकरी और बच्चों की परवरिश की मांग पर अब तक कोई ठोस घोषणा नहीं हुई है।
यह हादसा न केवल मजदूरों की सुरक्षा के प्रति प्रशासन और उद्योगों की लापरवाही को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि श्रमिकों के जीवन की कीमत पर बड़े प्रोजेक्ट्स को प्राथमिकता दी जा रही है। सरकार और उद्योगों को सुनिश्चित करना चाहिए कि मजदूरों की सुरक्षा के लिए कड़े कदम उठाए जाएं और इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।
कुसुम प्लांट हादसे ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। मुआवजा और सरकारी नौकरी से परे यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि मजदूरों की सुरक्षा प्राथमिकता बननी चाहिए। प्रशासन और उद्योग प्रबंधन के लिए यह एक चेतावनी है कि विकास और प्रगति के साथ-साथ श्रमिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करना उनकी नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है।